दिनांक _ 19 नवंबर २०२१
पारिवारिक (कहानी)
"तुम बिन जाऊं कहां ?"
विमला कुएं में बाल्टी डाली ही थी कि , अंदर से सासू मां की आवाज़ आई !
बहु जल्दी कर विपुल को स्कूल के लिए तैयार भी करना है।
हां मां आईईईई और जल्दी-जल्दी बाल्टी खिंचने लगी तभी, विपुल के बापू आ गए और मेरा हाथ थाम कर कहने लगे ! अरे क्यों इतनी मेहनत करती हो ? मुझे आ जाने दिया होता, मैं पानी भर देता।
विमला शरमा कर पल्लू ठीक करती हुई मुस्करा कर रह गई । छोड़ो न, मां बुला रही है।
मां के बुलावे पर तो उतावली हो जाती हो और मैं बुलाऊं तो नखरे दिखाने लगती हो ! धत् अभी जाने दो ! कोई देख लेगा तो ? अभी कितने काम निपटाने हैं
और हां तुम भी तैयार हो जाओ । विपुल को स्कूल छोड़ने नहीं जाना है ? मैं नास्ता तैयार करती हूं।
जाऊंगा बाबा, कौन सा आधे घंटे लेट हो जाने पर कोई बोलने वाला है शंभू सिंह के बेटे को ।
चलो-चलो खुद तो बाबुजी के लाड़-प्यार में पढ़े नहीं, अब बच्चे का तो ख्याल करो।
तुम तो पढ़ कर जैसे डीएम बन गई हो। देखो मुझे ताने मत दो,अभी भी अप्लाई कर दूं तो मेरी नौकरी पक्की है।
अरे-अरे तुम तो गुस्सा करने लगी ।
नहीं बोलती जाओ, कहती हुई मुस्कुराते हुये विमला घर की ओर भागी।
विपुल बेटा चलो स्नान कर लो विमला ने कहा । आया मां कहता हुआ भाग कर विपुल पापा के पिछे छुपने लगा ।
इतने में सासू माँ बोल पड़ी, अरे क्यों घुड़कती हो मेरे पोते को ?
आप भी न अम्मा , दादी-पोता मिलकर मुझे चकरघिन्नी बना देते हो ।
चल बहु तूं रसोई में, मैंने सब्जी काट कर और आटा लगा कर रख दिया है ।
तू नास्ता तैयार कर ले, मैं तब तक बच्चे को नहला देती हूं ।
अम्मा ने घुड़क कर कहा, चल-चल बहुत अंग्रेजी वाली बहु बनी फिरती है ।
आप भी न अम्मा !
अब जल्दी रसोई में जा विरेन भी आता ही होगा , सौ जंजाल लिए फिरता है।
बापू के जमाने में तो घोड़े बेचकर सोया रहता था और विमला मुस्कुराती हुई चल दी रसोई में।
एक घंटे में विरेन्द्र ने सायकिल पर विपुल को बैठाया और स्कूल चला गया।
मां को नास्ता देकर विमला थोड़ी राहत की सांस लेती हुई कमरे में आ गई ।
आईने के सामने खड़ी होकर खुद को निहारती हुई सोचने लगी ।
विरेन कितना प्यार करता है मुझे , मैं ही कभी-कभी उसका दिल दुखा देती हूं।केवल पढ़ाई और नौकरी ही जिंदगी नहीं है । मुझे अपनी पढ़ाई का ताना नहीं देना चाहिए था। विरेन बोलता नहीं है पर अंदर मन में जरुर दुखित हो जाता है ।
जाते समय कैसा गुमसुम और उदास था, कितनी मेहनत करता है । कोई आभाव नहीं होने देता मुझे और अम्मा भी कितना प्यार करती हैं ।
आज विरेन आ जाय तो उसे स्पेशल खाना खिलाउंगी और माफी मांग लूगी फिर, मुस्कुराती हुई विमला रसोई की ओर चल दी ।
विरेन विपुल को स्कूल छोड़ कर नौकरी के लिए इंटरव्यू देने के लिए गया लेकिन उसे वहां कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई ।
यही दिनचर्या विरेन और विमला के परिवार की थी । वीरेन कम पढ़ा-लिखा था और उसे कार्य का अनुभव भी नहीं था इसलिए, लाख हाथ-पैर मारने के बावजूद भी विरेन नाकाम होता चला गया और तनावग्रस्त हो गया ।
अब विरेन पहले की भांति विमला के साथ शरारत और हंसी-ठिठोली नहीं करता था । अब वह बेहद संजीदा और चिड़चिड़ा हो चुका था । उसके मन में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो चुके थे । मनघडंत ख्यालातों ने उसे पूर्ण रूप से घेर लिया था। विमला और विरेन का रिश्ता अब पहले की तरह नहीं था। विमला ने यह बात भांप ली थी लेकिन, वह विरेंद्र से या किसी और से कोई जिक्र नहीं करती थी बहुत समय तक यही दिनचर्या चलती रही।
वीरेन के पिता की पेंशन भी अब बंद हो चुकी थी। लिहाजा घर में आमदनी का कोई स्रोत नहीं था। विमला ने तय किया कि, उसे कुछ न कुछ तो करना ही होगा इसलिए, विमला नौकरी की तलाश में चल पड़ी। विमला का विषय ज्ञान, डिग्रियां और उसकी पर्सनालिटी देखकर उसे जल्द ही नौकरी मिल गई एक अच्छी सैलरी के साथ ।
विमला ने यह बात सबसे पहले वीरेंद्र को बताई कि उसे नौकरी मिल चुकी है लेकिन, विरेन को कोई खुशी नहीं हुई। वह अंदर ही अंदर और अधिक घुटने लगा। विमला का रोजगार और विरेन की बेरोजगारी उन दोनों के बीच में एक खाई की तरह बन चुकी थी। उनके रिश्ते में बहुत दूरियां आ चुकी थी और नोक-झोंक हर छोटी-बड़ी बात पर होने लगी ।
1 दिन विरेन को ख्याल आया कि, क्यों ना मैं कोई छोटा-मोटा काम धंधा ही डाल लूं । उसने एक चाट की दुकान डालने की सोची और किस्मत से वो चाट की दुकान चल पड़ी। लेकिन विमला को यह नागवार गुजरा कि, वह एक अच्छे कॉलेज में प्रोफेसर है और उसका पति एक चाट की दुकान चलाता है । यह उसके अहम् को स्वीकार ना हुआ ।
विमला, विरेन को अपने से बहुत ही कम आंकने लगी । वक्त बीतता गया और इन दोनों के रिश्ते की खाई बढ़ती चली गई लेकिन, दोनों की तरक्की काबिले-तारीफ थी ।
एक दिन कॉलेज में चेकिंग के लिए एक टीम आई और कुछ अव्यवस्था पाई जाने पर कॉलेज की मान्यता को रद्द कर दिया गया । विमला की नौकरी छूट गई और वह घर का चूल्हा-चौका फिर से संभालने लगी । वीरेंद्र अपनी दुकान चला रहा था वह दुकान अब एक रेस्टोरेंट में तब्दील हो चुकी थी ।
विमला को धीरे-धीरे अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने विरेंद्र से माफी मांगने की सोची । उसे यह अहसास हुआ कि, "कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता काम तो काम होता है ।"
उसने हिम्मत करके वीरेंद्र से माफी मांगी । विरेन एक साफ़ दिल इन्सान था उसने, विमला को माफ कर दिया ।
विमला को यकीन ही नहीं हुआ कि, इतनी आसानी से विरेन ने उसे माफ कर दिया है जबकि , उसने वीरेंद्र को पल-पल झुकाया था ताने मारे थे ।
विमला मन ही मन सोचने लगी कि, क्या मैंने शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी पाए हैं ? क्या मैं एक अच्छी गृहिणी, अच्छी पत्नी, अच्छी मां बन पाई ?
इन सब मामले में तो मुझसे अधिक नंबर विरेन को ही मिलेंगे ।
असल में "शिक्षा आपको सभ्य बनाती हैं।" जो शिक्षा अहंकार मन में पैदा कर दे, वह शिक्षा जहर के समान है । उसे अपनी गलती का एहसास हुआ ।
विरेन भी भांप चुका था कि, विमला मन ही मन पछता रही है इसलिए, विरेन और उसकी मां ने विमला को माफ कर दिया था ।
तब विमला खुशी से विरेन के पास जाती हैं और विरेन के सीने से लग कर कहती हैं।
"तुम बिन जाऊं कहां ?"
____अनुपमा पटवारी ✍
John Vanish
20-Nov-2021 10:07 AM
Good story
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Ramsewak gupta
20-Nov-2021 05:11 AM
शर्मा कर सही शब्द है अति उत्तम है कहानी आपकी धन्यवाद
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